पागल पूछे निरुपया से

21:01 Unknown 0 Comments

निपट उदासी मन पर छाई
बैरन बन गई है तन्हाई 
चकित दंग और है हैरान !
पागल पूछे निरुपया से 
कहाँ खो गई वो मुस्कान !
  प्रीत गीत की कहाँ खो गई 
  प्रेम अगन क्या तृप्त हो गई 
  सूने सारे स्वपन हो गये 
  मन मस्तिष्क के ताल बह गये !
बाग़ हो गये सब वीरान 
माली पूछे मेघमती से 
कहाँ खो गयी वो मुस्कान !
  ज्योति से ज्वाला इर हो गई 
  नित्य निरंतर शांत सो गई! 
  खाली मवाली शेष रह गया 
  मन का मीत किस धुन में बह गया !
पलकों के परदे झुक कर ढूंढें 
अनजाने कदमों के निशान !
पागल पूछे निरुपया से
कहाँ खो गई वो मुस्कान !
  नग्न निशा अंधियारी छाई
  शिशिर धुप गई पर नही परछाई !
  चातक ढूंढे एक चकोरी 
  बिना सुनाये लोरी!
सारा योवन समेट के बोली 
कहाँ छुप गया सुन्दर चाँद 
पागल पूछे निरुपया से
कहाँ खो गई वो मुस्कान !
  मृत देह पर ना कभी रौनक़ छाई 
  शोक मगन परिवार हो गया 
  नीरस ये संसार हो गया !
शव भी पूछे भटकते मन से 
कैसे छूटे मेरे प्राण 
पागल पूछे निरुपया से
कहाँ खो गई वो मुस्कान !

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