परिंदे क दर्द का फ़साना
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एक परिंदे के दर्द का फ़साना था,
कटा था पर(पंख) फिरभी उड़ कर जाना था!
बहता चला जा रहा था बेफिक्री में वो,
न कोई मंज़िल थी बेशक काफिरों सा अफ़साना था!
खुद बादलों क आँचल में समां जाने को बेकरार था,
मगर साथियों को उस पार ले जाना था!
जा फसा वो बहेलिये के जाले में,
अब न कोई ख्वाहिश बची न कोई ठिकाना था!
बारिश में भीगना था और धुप में सूख जाना था!
कुदरत का करिश्मा तो देखो ,
उप्पर से बिजिली गिरी
तो नीचे उसका आशियाना था!
बस आज़ादी बसी थी उसकी हर एक आदत और अफ़साने में,
आँख से बूँद न निकली,
पर कुछ दर्द तो था उसके करहाने में!
ले गया जादूगर पहाड़ी पर उसे
और फेेंक दिया नीचे ज़माने में,
फेकना तो बस एक बहाना था,
उसे एक लम्बी उड़ान पर जो जाना था!
खोजता रहा वो खुदा को वो,
मंदिर मस्जिद और मैखाने में,
आँख से बूँद निकली तो उसने जाना,
वो ही राम मदीना में ह जो ह राम शिवालय में !
--------नितेश र महलावत-------
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